साहित्य’ बबाल मेरे दृष्टिकोण से :
हमारा देश और यहाँ के लोग भी अजीब हैं… कभी कुछ कुछ सोचने में मजबूर कर देते हैं ,, …..
जैसे कि आप सभी को पता है कि आसाज कल साहित्य और सम्मान पर जम कर बबाल हो रहा है और मीडिया भी इस पर चारों ओर से टी॰ आर॰ पी॰ बटोर रही है ।
अब सवाल यह खड़ा होता है कि क्या सिर्फ बहस करने से मुद्दे का हल हो जाएगा? या इसकी गंभीरता पर भी ध्यान देना आवश्यक है ?
जिन भी साहित्यकारों /लेखकों ने ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ का अपमान किया है अर्थात लौटाया है … उनको यह समझना और सोचना आवश्यक है कि यह पुरस्कार उनको किस उद्देश्य के प्रति दिया गया था , अगर उनको लौटाना ही था तो लिया ही क्यों था ?
चलो देर आए दूरस्थ आए ….. नींद से देर में ही जागे परंतु होश में तो आए ….. कि वो ”साहित्य अकादमी पुरस्कार” के हकदार नहीं थे । मेरे हिसाब से इस मामले को इतना खींच ताड़ कर तोड़ने की कोई जरूरत नहीं है ….. जो जिसके हकदार नहीं है या किसी को नहीं चाहिए तो वापिस ले लो ….. बात खतम । वो भी खुश देश भी खुश … जनता का भी समय बच जाएगा ॥
अन्त मे मैं एक बात जरूर कहना चाहूँगा कि किसी भी व्यक्ति को सम्मान उसके कार्यों , सेवाओं एवं योग्यता के लिए दिया जाता है , अगर प्रतिभागी या पावती व्यक्ति उस सम्मान का अपमान करता हो तो वह उस लायक नहीं होता है , इससे उस सम्मान की गरिमा को ठेस पहुँचती है ।
हर व्यक्ति को इस बात का ध्यान रखना आवश्यक होता है कि किसी भी पुरस्कार या सम्मान की गरिमा बनाए रखना उसका प्रथम कर्तव्य होता है, तभी वह उस सम्मान के लायक होता है ।
कृप्या ध्यान दें : यह लेख किसी की भावनावों को ठेस पहुँचने या किसी को नीचे दिखाने के लिए नहीं लिखा गया है यह मेरे निजी एवं स्वतंत्र विचार है ।